Skip to main content

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय ने कहा- राम मंदिर आंदोलन के विरोधी भी देश भक्त, सबके अपने कारण

अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन की तैयारी जोरों पर है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय का कहना है कि राम मंदिर आंदोलन का विरोध करने वाले देश विरोधी नहीं, देश भक्त ही थे। सबके अपने-अपने कारण होते हैं। राम सबके हैं। चंपत राय से विजय उपाध्याय की बातचीत के मुख्य अंश...

1. सवाल- राम मंदिर के भूमि पूजन को किस रूप में देख रहे हैं?
जवाब- इसे इतिहास के परिवर्तन के रूप में देख रहा हूं। इतिहास के पुनर्लेखन की जरूरत दुनिया के इतिहासकार महसूस कर रहे हैं।

2. सवाल- विपक्ष का आरोप है कि हिंदूवादी ताकतें देश के सेक्युलर ढांचे से छेड़छाड़ कर रही हैं। आप किस इतिहास के पुनर्लेखन की बात कह रहे हैं?
जवाब- भारत गुलामी के चिह्नों से मुक्ति की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। जब पंडित नेहरू प्रधानमंत्री थे, तब इंडिया गेट से ब्रिटिश मूर्ति हटी, सड़कों के नाम से अंग्रेज हटे। कंपनी गार्डन, गांधी पार्क या नेहरू पार्क हो गए। इंदिरा गांधी आईं तो इरविन हॉस्पिटल गया, जय प्रकाश नारायण हो गया। कलकत्ता, कोलकाता, मद्रास चेन्नई, बॉम्बे मुंबई हो गया। औरंगजेब रोड का नाम बदला गया।

3. सवाल- स्थानों के नाम बदलने व राम मंदिर बनने का क्या रिश्ता है?
जवाब- नाम बदलने के काम सरकार के स्तर पर हुए। जबकि राम जन्मभूमि मुक्ति का मार्ग समाज की आकांक्षाओं से निकला है। समय-समय पर सत्ता के विरोध के बाद निकला है। राम मंदिर आंदोलन का विरोध करने वाले देश विरोधी नहीं देश भक्त लोग ही हैं। सबके अपने-अपने कारण होते हैं।

4. सवाल- मंदिर आंदोलन में जान देने वालों के लिए क्या योजना है?
जवाब- हम कृतज्ञ लोग हैं, कृतघ्न नहीं। उनके लिए ठीक-ठाक काम करेंगे।

5. सवाल- आप राम मंदिर के पुराने मॉडल की बात कर रहे थे, फिर ट्रस्ट ने नए स्वरूप को किस तरह तय किया?
जवाब- मंदिर के स्वरूप का अभी किसी के पास कोई प्रमाणिक चित्र नहीं है, सब हवा-हवाई है। जब हमने मॉडल तैयार कराया था, तब हमारे पास कितनी जमीन थी, वास्तव में थी ही नहीं। जितनी जमीन हम हक से मांग रहे थे, उतने के लिए तब मॉडल बना लिया। तब किसी ने नहीं सोचा था कि कभी 70 एकड़ जमीन मिलेगी। अब सब ठीक करेंगे। मंदिर के चारों ओर खुला मैदान रहे, ज्यादा भक्त वहां आ सकें, इसलिए बदलाव हुआ है।

6. सवाल- प्रधानमंत्री को मंदिर के भूमि पूजन के लिए बुलाने का क्या मकसद है?
जवाब- यह राष्ट्र मंदिर है। ये किसी व्यक्ति या परंपरा का छोटा-सा मंदिर नहीं है। राष्ट्र मंदिर में राष्ट्र का प्रतिनिधि आना ही चाहिए। इंडोनेशिया में मुसलमान राम को मानते हैं। रहीम और रसखान हमारी संस्कृति के हैं। कुछ लोग राम को महापुरुष मानते हैं। अतीत में भी किसी ने राम को ‘इमाम ए हिंद’ कहा था। इसका मतलब राम सबके हैं।

7. सवाल- मंदिर के निर्माण में कितना खर्च आएगा? क्या विदेशी भी योगदान कर सकेंगे?
जवाब- जो समाज देगा लगाते चले जाएंगे, उधार कहीं से नही लेंगे। विदेशी मुद्रा का भारत में आना अच्छा ही होगा, लेकिन इसके लिए अभी हमने पंजीकरण नहीं कराया है।

ये भी पढ़ें:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर के शिलान्यास में रखेंगे 22.663 किलो की चांदी की ईंट, अब तक एक क्विंटल से ज्यादा वजन की ईंटें दान में आईं



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय का कहना है कि यह राष्ट्र मंदिर है। ये किसी व्यक्ति या परंपरा का छोटा-सा मंदिर नहीं है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/337Idzh

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी