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Showing posts from October, 2020

मुझसे तेजस्वी को क्या खतरा होगा, उनके माता-पिता सीएम रहे हैं, मेरी मां आंगनबाड़ी में पढ़ाती हैं

कन्हैया कुमार इस विधानसभा चुनाव मे ज्यादा प्रचार नहीं कर रहे हैं। वो ज्यादातर समय बेगूसराय के अपने घर में रहते हैं और आसपास की कुछ विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने चले जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में चर्चा का केंद्र रहे और इस चुनाव में होने वाली चर्चाओं से खुद को बाहर रखने वाले कन्हैया से हमारी मुलाकात बेगूसराय में उनके घर पर हुई। हमने उनसे चुनाव और राजनीति पर सवाल-जवाब किए... 2019 के लोकसभा चुनाव में आप स्टार कैंडिडेट थे, एक साल बाद हो रहे इस विधानसभा चुनाव से आप बाहर क्यों है? नहीं। चुनाव से हम बाहर नहीं हैं। चुनाव में होने का मतलब उम्मीदवार होना ही नहीं होता है। बतौर मतदाता भी आप चुनाव में होते हैं। हम तो मतदाता से आगे बढ़कर और जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। कई जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। प्रचार कर रहे हैं। जन संपर्क कर रहे हैं। सभाएं कर रहे हैं। पार्टी ने जो जिम्मेदारियां दी हैं, वो निभा रहे हैं। चुनाव से बाहर रहने से मेरा मतलब है कि आप उतनी रैलियां नहीं कर रहे हैं, जितनी आप कर सकते हैं? पहले चरण के चुनाव में हमने जरूर कोई बड़ी सभा नहीं की, लेकिन दूसरे चर

लड़की ने इनकार क्या किया, मर्द का इगो सांप जैसा फुफकारता है, फिर उसे कुचलने की कवायद शुरू होती है

हाल ही में हरियाणा में एक लड़की को सरेबाजार गोली मार दी गई। वजह- लड़की ने युवक का प्रेम-निवेदन अस्वीकार कर दिया था। निकिता, जो IAS बनने का ख्वाब देख रही थी, उसके ख्वाब को तौफीक ने भरी सड़क बेरहमी से कुचल दिया। तौफीक के एकतरफा प्यार के बारे में दोनों का ही पूरा घर जानता था, लेकिन किसी ने तौफीक को भरे बाजार बेइज्जत नहीं किया, कस के तमाचा मारना तो दूर की बात है। निकिता अकेली नहीं। ऐसी हजारों-लाखों लड़कियां रोज सड़क पर इस खतरे के साथ निकलती हैं कि कहीं किसी मर्द की नजर उन पर पड़े और वो उसे पसंद न कर ले। पसंद करते ही शुरू होता है इजहार और इनकार का खेल। लड़की ने जरा इनकार क्या किया, मर्दों का इगो कांच की तरह झन्न करके टूट जाएगा। आखिर वो खुद को समझती क्या है? ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं? चोटिल इगो को मर्द के यार-दोस्त और उकसाते हैं। अरे, कहीं किसी और के साथ तो लफड़ा नहीं चल रहा! कल खूब बन-ठनकर कहीं गई थी। इगो सांप की तरह फुफकार मारता है और फिर लड़की को कुचलने की तमाम कवायद चल पड़ती है। जिस चेहरे पर इतरा रही है, उसे ही खत्म कर देते हैं। कहीं की न रहेगी और ये लीजिए, तुरंत एसिड की बोतल

मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा; अब सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए

औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। अच्छी-खासी सैलरी थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक उन्होंने शहर से गांव लौटकर खेती करने का प्लान बनाया। 2011 में गांव लौट आए। आज वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। धान, गेहूं, लेमन ग्रास और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। दो लाख से ज्यादा किसान देशभर में उनसे जुड़े हैं। सालाना 25 लाख रुपए का टर्नओवर है। 33 साल के अभिषेक की पढ़ाई नेतरहाट स्कूल से हुई। उसके बाद उन्होंने पुणे से एमबीए किया। 2007 में HDFC बैंक में नौकरी लग गई। यहां उन्होंने 2 साल काम किया। इसके बाद वे मुंबई चले गए। वहां उन्होंने एक टूरिज्म कंपनी में 11 लाख के पैकेज पर बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर ज्वाइन किया। करीब एक साल तक यहां भी काम किया। 2016 में पीएम मोदी ने अभिषेक को कृषि रत्न सम्मान से नवाजा था। अभिषेक कहते हैं, 'मुंबई में काम करने के दौरान मैं वहां की कंपनियों में तैनात सिक्योरिटी गार्ड से मिलता था। वे अच्छे घर से थे, उनके पास जमीन भी थी, लेकिन रोजगार के लिए गांव से सैकड़ों किमी दूर वे यहां जैसे-तैसे गुजारा कर रह

अब आप-हम भी खरीद सकते हैं कश्मीर में जमीन; आइए समझते हैं कैसे?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के कानूनों में बड़े बदलाव किए। पिछले साल 5 अगस्त को बने इस नए केंद्र शासित प्रदेश के लिए पांचवां ऑर्डर जारी किया। इसने राज्य के 12 पुराने कानून खत्म कर दिए। साथ ही 14 कानूनों में बदलाव किया। पूरे देश में इस फैसले को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सफलता माना जा रहा है, वहीं कुछ लोग जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक जमीन सुधार कानून को रद्द करने की आलोचना भी कर रहे हैं। दरअसल, पूरे भारत के लिए यह फैसला जितना साफ-सुथरा दिख रहा है, वह वैसा है नहीं। इससे जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को भी जमीन की खरीद-फरोख्त करने का अधिकार मिल गया है। गृह मंत्रालय का आदेश क्या है? केंद्र सरकार ने पिछले साल संविधान के आर्टिकल 370 और 35A को रद्द किया और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाया था। आर्टिकल 35A यह गारंटी देता था कि राज्य की जमीन पर सिर्फ उसके स्थायी निवासियों का हक है। अब आर्टिकल 35A तो रहा नहीं, लिहाजा नए आदेश से जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का रास्ता सबके लिए खुल गया। जम्मू-कश्मीर के चार कानून ऐसे थे, जो स्थायी निवासियों यानी परमा

इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी

इतिहास में आज के दिन से अच्छी और बुरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं। एक तो भारत को आकार देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन है। वहीं, आयरन लेडी यानी इंदिरा गांधी की हत्या का दिन भी यही है। बात 36 साल पुरानी है। 1984 में 30 अक्टूबर को ओडिशा में चुनाव प्रचार से उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली लौटी थीं। उन पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने पीटर उस्तीनोव आए हुए थे। 31 अक्टूबर को मुलाकात का वक्त तय था। सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर इंटरव्यू की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इंदिरा बाहर निकलीं। सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिंह और संतरी बूथ पर कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह स्टेनगन लेकर खड़ा था। इंदिरा ने आगे बढ़कर बेअंत और सतवंत को नमस्ते कहा। इतने में बेअंत ने .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर तीन गोलियां दाग दीं। सतवंत ने भी स्टेनगन से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। एक मिनट से कम वक्त में स्टेनगन की 30 गोलियों की मैगजीन खाली कर दी। साथ वाले लोग तो कुछ समझ नहीं सके। उस समय पीएम आवास पर खड़ी एंबुलेंस का ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। कार से इंदिरा गांधी को एम्स ले गए। शरीर से लगातार खून बह रहा था।

बच्चों पर रिजल्ट का बोझ न डालें, दूर की सोचने को कहें; जानिए मोटिवेशन के क्या फायदे हैं

​​​​ लीसा डैमऑर. कोरोना के चलते इस साल बच्चों की पढ़ाई आधी-अधूरी ही हुई है। बच्चे करीब 8 महीने से घर पर ही हैं। बच्चों का एकेडमिक मोटिवेशन लेवल बहुत कम हो गया है। अब जरूरत उन्हें नए तरीके से मोटिवेट करने की है, लेकिन क्या आप उन्हें ज्यादा पढ़ाई और ज्यादा नंबर लाने के लिए मोटिवेट करने वाले हैं? यदि हां तो ऐसा बिल्कुल मत करिएगा, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं- इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है। एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होत

बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने वोट के बदले बांटे नोट, जानें वायरल वीडियो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें बिहार चुनाव में RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। वीडियो बिहार चुनाव प्रचार का ही बताया जा रहा है। चुनाव प्रचार में नोट बांटते हुए तेजस्वी यादव 😂😂😂😂 क्या दिन आ गए 😂😂😂 pic.twitter.com/roWajI9K1c — मनीषा मिश्रा 🇮🇳टी,,ए,,एफ🇮🇳 हिंदी में नाम लिखें (@Nisha2522) October 30, 2020 और सच क्या है ? वायरल वीडियो में तेजस्वी मास्क लगाए दिख रहे हैं। साफ है कि वीडियो कोरोना काल का ही है यानी ज्यादा पुराना नहीं है। अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव प्रचार में वोटरों को नोट बांटते देखे गए हैं। पड़ताल के दौरान हमें तेजस्वी यादव के 31 जुलाई के ट्वीट में वायरल वीडियो से मिलता-जुलता एक वीडियो मिला। इस वीडियो में भी तेजस्वी लोगों को नोट बांटते दिख रहे हैं। यहां से हमें क्लू मिला कि वायरल वीडियो इसी साल बिहार में आई बाढ़ का हो सकता है। मेरी नहीं जनता की सुनिए। बिहार के जलसं

15 साल में देश में हर आदमी की सालाना कमाई एक लाख रु. बढ़ी, पर बिहार में सिर्फ 35 हजार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैलियों में जो शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है, वो है ‘15 साल’। नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखा रहे हैं। अपने 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करते हैं। मानो इन सालों में बिहार की कायापलट हो गई हो। पर, आंकड़े क्या कहते हैं? आंकड़े कहते हैं कि बिहार आज भी देश के बाकी राज्यों से पिछड़ा हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में आज हर आदमी रोज सिर्फ 120 रुपए ही कमाता है। जबकि, झारखंड का आदमी रोज 220 रुपए तक की कमाई कर रहा। बिहार से 100 रुपए ज्यादा। सिर्फ कमाई ही नहीं, बेरोजगारी के मामले में भी बिहार, झारखंड से कोसों आगे है। यहां बिहार की तुलना झारखंड से इसलिए, क्योंकि आज भले ही बिहार और झारखंड की पहचान दो अलग-अलग राज्यों की हो, लेकिन 20 साल पहले तक दोनों एक ही तो थे। आइए 5 पैमानों पर परखते हैं कि नीतीश के 15 सालों में बिहार कितना बदला? 1. पर कैपिटा इनकमः झारखंड से भी पीछे बिहार इकोनॉमिक सर्वे और RBI के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल में बिहार में हर आदमी की कमाई 5 गुना बढ़ी है। नीतीश जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां हर आ

पढ़िए, दि इकोनॉमिस्ट की इस हफ्ते की चुनिंदा स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर

1. महामारी न फैलती तो ट्रम्प के जीतने की संभावना थी, वैसे उन्होंने देश को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया 2. महामारी के बाद भारत सहित कई देशों में अधिक बच्चों का जन्म संभव 3. कारीगरों की बढ़ती उम्र से मुसीबत, सिंगापुर में स्ट्रीट फूड सेंटरों के बंद होने का बढ़ता खतरा 4. पर्यावरण की ओर बढ़ते कदम, जलवायु के अनुकूल प्रोजेक्ट में 2.68 लाख करोड़ रुपए लगे आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें Read, select stories from The Economist with just one click from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HQRYZO

21 में से 17 प्रोजेक्ट पूरे, पटेल की प्रतिमा के हावभाव के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च हुई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण का काम सिर्फ 33 महीनों में हो गया था। सरदार पटेल की यह प्रतिमा (182 मीटर) दुनिया में सबसे ऊंची है। 2010 में मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री इसे स्थापित करने का ऐलान किया था। 2013 में प्रतिमा के निर्माण का काम शुरू हुआ था। काम कितना अहम था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल की प्रतिमा के हावभाव तय करने के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च की गई थी।स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से जुड़े 21 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। इनमें से 17 अब तक पूरे हो चुके हैं। हालांकि, इनमें से 2 में काम बाकी है और 2 की जानकारी नहीं मिल सकी है। 13 का लेखा-जोखा है। सरदार पटेल की प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार राम सुतार ने डिजाइन की, निर्माण लार्सन एंड टुब्रो कंपनी ने किया। जानिए, क्या है जो 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' को खास बनाता है... 109 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए देश भर के पांच लाख से अधिक किसानों के पास से 135 मीट्रिक टन खेती-किसानी के पुराने औजार दान में लिए गए, जिन्

प्ले-ऑफ के लिए दिल्ली का मुकाबला मुंबई से; शाम को बेंगलुरु-हैदराबाद आमने-सामने

IPL के 13वें सीजन का लीग राउंड अपने आखिरी चरण में पहुंच गया है। शनिवार को होने वाले डबल हेडर (एक दिन में 2 मैच) में 4 में से दो टीमों के पास प्ले-ऑफ में अपनी जगह पक्की करने का मौका है। मुंबई इंडियंस पहले ही अपनी जगह प्ले-ऑफ में पहुंच चुकी है। उसका मुकाबला दोपहर में 3:30 बजे दिल्ली कैपिटल्स से होगा। इसके बाद शाम 7:30 बजे शारजाह में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच मुकाबला होगा। यदि दिल्ली और बेंगलुरु अपने-अपने मुकाबले जीत लेतीं हैं, तो दोनों की प्ले-ऑफ में जगह पक्की हो जाएगी। सीजन के 51वें मैच में मुंबई के साथ होने वाले मुकाबले में दिल्ली जीत की पटरी पर लौटना चाहेगी। लगातार 3 मैच हारने के बाद दिल्ली दबाव में है। वहीं, मुंबई के रेगुलर कप्तान रोहित शर्मा अनफिट हैं। उनकी जगह कुछ मैचों में कीरोन पोलार्ड कप्तानी संभाल रहे हैं। हैदराबाद के लिए एलिमिनेटर जैसा मुकाबला होगा वहीं, सीजन का 52वां मैच बेंगलुरु और हैदराबाद के बीच खेला जाएगा। हैदराबाद के लिए यह मैच एलिमिनेटर की तरह होगा। अगर यहां हारे, तो उसके लिए प्ले-ऑफ के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। दूसरी ओर, लगातार 2 मैच ह

ट्रम्प के दौर में अमेरिका ने अपना सम्मान खो दिया, उनकी फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बहुत क्रूर रही

ये कैटलॉग तैयार करना भी बेहद मुश्किल काम है कि डोनाल्ड ट्रम्प के चार साल राष्ट्रपति रहने के दौरान हमने क्या-क्या गंवाया। जब मैं इन बातों को लिख रहा हूं तब तक कोरोनावायरस के चलते 2 लाख 25 हजार अमेरिकी नागरिक मौत का शिकार बन चुके हैं। महीनों से हमारे यानी अमेरिकी बच्चे स्कूल नहीं गए हैं। बहुत जल्द देश का बड़ा हिस्सा थैंक्सगिविंग भी सेलिब्रेट नहीं कर पाएगा। बच्चों को परिवार से जुदा कर दिया ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने क्रूर फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बनाई। बहुत मुमकिन है कि इसका शिकार बने 545 बच्चे अब कभी अपने पैरेंट्स से न मिल पाएं। अग्रणी लोकतंत्र के तौर पर अमेरिका अपना रुतबा और सम्मान खो चुका है। हमने सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेंदर गिन्सबर्ग को खोया। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह पहला मौका जब इतने अमेरिकियों ने नौकरियां गंवाईं। इनके साथ उन सांस्कृतिक घटनाओं को हुआ नुकसान भी जोड़ लीजिए, जो ट्रम्प के दौर में हुआ। पिछले चार साल का अनुभव जब मैं पिछले चार साल अपनी तरह से देखता हूं तो उसमें ऐसा लगता है कि जैसे इस प्रेसिडेंट का दौर किसी ब्लैकहोल की तरह रहा। अपनी तरह के और अलग नुकसान हुए। हर वक्त यह म

दो चरणों के चुनाव अभी बाकी हैं, अनुमानों पर ब्रेक लगाएं

अधिक वोटिंग या कम वोटिंग के बारे में लोगों की अपनी-अपनी व्याख्या हो सकती है, लेकिन तथ्य यह है कि हमें संभावित परिणाम और वोटिंग में कोई बहुत मजबूत संबंध नजर नहीं आता है। मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं बिहार में पहले चरण के 71 विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान के आधार पर अपनी विवेचना पेश करूं। सौभाग्य से मैं इस सवाल से आसानी से बच गया, क्योंकि पहले चरण में इन क्षेत्रों में मतदान कमोवेश 2015 के चुनावों के समान ही रहा। 2015 में इन क्षेत्रों में 54.87 फीसदी मतदान हुआ था और चुनाव आयोग के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार भी यह करीब 54 फीसदी ही है। 3 नवंबर और 7 नवंबर को अभी मतदान के दो चरण और होने हैं और इनके आंकड़ों से ही इस बात की बड़ी व्याख्या होगी कि हवा किस तरफ बह रही है। मेरा मानना है कि पहले चरण के मतदान के आंकड़ों से कोई बहुत ही साधारण लेकिन साथ ही बहुत महत्वपूर्ण अनुमान निकाल सकता है। चुनाव की तैयारी से पहले ही इस बात की अनेक आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि महामारी के इस दौर में चुनाव किस तरह से कराए जा सकते हैं। इस बात की भी आशंकाएं थीं कि क्या लोग वोट डालने के लिए आएंगे, खासकर बुजुर्ग, जिन्

आतंकियों ने दो परिवारों के इकलौते बेटे छीने; लोग गुस्से में हैं और नेता खौफजदा

घाटी में युवा नेताओं की हत्या की साजिश सिर्फ कुलगाम तक सीमित नहीं है। 370 हटने के बाद बदले हुए माहौल में युवाओं का मुख्यधारा में आना आतंकियों को बड़ा खतरा दिख रहा है। क्योंकि, कश्मीरी युवाओं के दम पर ही सरहद पार बैठे आतंक के आका यहां दहशत बनाए हुए हैं। गुरुवार को भाजपा नेता फिदा हुसैन, उमर राशिद और उमर हाजम की हत्या भी इसी साजिश का हिस्सा है। आतंकियों ने इस हमले में दो परिवारों के इकलौते बेटे छीने हैं। फिदा हुसैन परिवार का इकलौता सहारा था। मां-बाप बुजुर्ग हैं। दो बहनें हैं। मां ने बिलखते हुए कहा- ‘अब हम किसके सहारे जिएंगे।’ बुजुर्ग पिता भीड़ के बीच बात करने की स्थिति में भी नहीं थे। इसी तरह उमर राशिद ड्राइवर था। वह भी बुजुर्ग मां-बाप और दो बहनों का इकलौता सहारा था। बहनें गहरे सदमे में हैं। उन्होंने बताया कि वे सिर्फ भाई के लिए इंसाफ चाहती हैं। चीत्कार के बीच उठे तीनों जनाजों में हजारों की भीड़ उमड़ी। अंतिम रस्म अता करते हुए मौलवी कह रहे थे- हे अल्लाह! इस कत्लेआम को रोकें। कश्मीर में और कितने लोग इस तरह मारे जाएंगे? इन हत्याओं से इलाके के लोग बहुत गुस्से में हैं। उन्होंने सुरक्षा एजेंसिय

21 में से 17 प्रोजेक्ट पूरे, पटेल की प्रतिमा के हावभाव के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च हुई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण का काम सिर्फ 33 महीनों में हो गया था। सरदार पटेल की यह प्रतिमा (182 मीटर) दुनिया में सबसे ऊंची है। 2010 में मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री इसे स्थापित करने का ऐलान किया था। 2013 में प्रतिमा के निर्माण का काम शुरू हुआ था। काम कितना अहम था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल की प्रतिमा के हावभाव तय करने के लिए 2 हजार से ज्यादा तस्वीरों पर रिसर्च की गई थी।स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से जुड़े 21 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे। इनमें से 17 अब तक पूरे हो चुके हैं। हालांकि, इनमें से 2 में काम बाकी है और 2 की जानकारी नहीं मिल सकी है। 13 का लेखा-जोखा है। सरदार पटेल की प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार राम सुतार ने डिजाइन की, निर्माण लार्सन एंड टुब्रो कंपनी ने किया। जानिए, क्या है जो 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' को खास बनाता है... 109 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए देश भर के पांच लाख से अधिक किसानों के पास से 135 मीट्रिक टन खेती-किसानी के पुराने औजार दान में लिए गए, जिन्