Skip to main content

अश्विन पूर्णिमा की रात ही क्यों बरसता है अमृत, क्यों रखते हैं चन्द्रमा की रोशनी में चावल की खीर

30 अक्टूबर, शुक्रवार यानी आज शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा। आज रात ही चंद्रमा पूरी 16 कलाओं वाला रहेगा। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्र पूजा और चांदी के बर्तन में दूध-चावल से बनी खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है। धार्मिक और व्यवहारिक महत्व होने के साथ ही सेहत के नजरिये से आयुर्वेद में भी इस परंपरा को खास बताया गया है।

काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के मुताबिक शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय आज शाम करीब 5.20 पर हो जाएगा। इसलिए रातभर पूर्णिमा तिथि रहेगी। वहीं, अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि का व्रत रखा जाएगा। इसी दिन तीर्थ स्नान, दान और पूर्णिमा पर होनी वाली पूजा-पाठ भी की जा सकेगी। इस दिन रात लगभग 8 बजे पूर्णिमा तिथि खत्म हो जाएगी।

शरद पूर्णिमा व्यवहारिक महत्व
9 दिनों तक व्रत-उपवास और नियम-संयम के साथ रहकर शक्ति पूजा की जाती है। जिससे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूती मिलती है। शक्ति इकट्ठा करने के बाद उस ऊर्जा का शरीर में संचार करने और उसे अमृत बनाने के लिए शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ अमृत वर्षा करता है। इस समय चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसके बाद उसकी किरणों के अमृत को दूध से बनी खीर के जरिए शरीर में उतारा जाता है।

अश्विन महीने की पूर्णिमा ही क्यों
अश्विन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र के स्वामी अश्विनी कुमार हैं। वेदों और पुराणों में अश्विनी कुमार को देवताओं के चिकित्सक बताया गया है। यानी इनसे ही देवताओं को सोम और अमृत मिलता है। जब इनके ही नक्षत्र में चंद्रमा पूरी 16 कलाओं के साथ मौजूद होता है तो हर तरह की बीमारियों को दूर करता है। ये स्थिति पूरे साल में सिर्फ एक ही बार शरद ऋतु के दौरान बनती है। इसलिए शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इसी वजह से इस पूर्णिमा को रोग नाशिनी भी कहा जाता है।

चावल की ही खीर क्यों
बीएचयू के प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि खीर इसलिए बनाते हैं, क्योंकि ग्रंथों में बताए गए पांच अमृत में से पहला दूध है। ज्योतिष ग्रंथों में भी बताया गया है कि दूध पर चंद्रमा का खास प्रभाव होता है। चंद्र दोष को खत्म करने के लिए दूध का दान किया जाता है। वहीं, खीर में चावल का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि वेदों में चावल को हविष्य अन्न कहा जाता है। यानि हवन करने के योग्य अन्न चावल ही है। चावल को अक्षत कहा जाता है। इसका मतलब है, जो कभी खंडित न हो। चंद्रमा की रोशनी से मिलने वाले अमृत का अंश चावल में आसानी से आ जाता है और उस चावल को खाने से शरीर पर उसका पूरा असर होता है।

चांदी का ही बर्तन क्यों
वाराणसी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी वैद्य प्रशांत मिश्रा बताते हैं कि चांदी का बर्तन खाने की चीजों को कीटाणुओं से बचाए रखने में कारगर होता है। चांदी के बर्तनों में पानी, दूध या कोई और तरल पदार्थ रखने से उसकी शुद्धता बढ़ जाती है। इसके साथ ही चांदी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के डॉ. अजय साहू और डॉ. हरीश भाकुनी के मुताबिक, ये धातु 100 फीसदी बैक्टीरिया फ्री होती है इसलिए इंफेक्शन से भी बचाती है। इनका कहना है कि चांदी के बर्तन में खाने से किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता है। ये हर तरह से सेहत के लिए अच्छी ही होती है। इसलिए हर तरह के संक्रमण से बचने के लिए शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है।

चंद्रमा का चरम काल
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र का कहना है कि पंचांग की गणना के मुताबिक, 30 अक्टूबर की रात 12 बजे बाद चंद्रमा पृथ्वी के करीब आ जाएगा। यानी कह सकते हैं कि 31 अक्टूबर की रात करीब 2.13 से सुबह 5.25 के बीच में चंद्रमा चरम पर रहेगा। इस दौरान खीर पर चंद्रमा का औषधीय असर और बढ़ जाएगा।
30 अक्टूबर की रात में करीब 10.30 से 12:50 के बीच कर्क लग्न रहेगा। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होने से ये समय चंद्रमा की पूजा के लिए खास रहेगा। पं. मिश्र बताते हैं कि इस समय चंद्र पूजा कर के खीर को चंद्रमा की किरणों में रखना चाहिए। इसके बाद अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को सुबह जल्दी उठकर नहाएं और भगवान से लंबी उम्र की प्रार्थना करने के बाद ही खीर खानी चाहिए।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शरद पूर्णिमा की रात में चंद्र पूजा और चांदी के बर्तन में दूध-चावल से बनी खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34GxLyW

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी