Skip to main content

अमेरिका का तालिबान और पाकिस्तान से सीधा संपर्क है, इसीलिए वह आतंकवाद के बारे में चुप रहता है

भारत और अमेरिका के बीच जो सामरिक समझौता हुआ है, वह स्वागत योग्य है, क्योंकि उसके तहत भारत को शत्रु-राष्ट्रों की समस्त गुप्त गतिविधियों की तकनीकी जानकारी मिलती रहेगी। भारत अब वह यह भी जान सकेगा कि कौन-सा देश उसके विरुद्ध जल, थल, नभ और अंतरिक्ष में क्या-क्या षड्यंत्र कर रहा है। यह समझौता यदि सालभर पहले हो गया होता तो गलवान घाटी में चीन की घुसपैठ का पता भारत को कब का लग गया होता।

इस समझौते के लिए अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री कार्ल एस्पर्स भारत आए हैं। लेकिन यहां यह प्रश्न स्वाभाविक है कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के ठीक एक हफ्ते पहले ही यह समझौता क्यों हो रहा है? अगर ट्रम्प हारे और जो बाइडेन जीते तो क्या यह समझौता टिक पाएगा? क्योंकि 2016 में जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे, तब भी ओबामा सरकार के साथ भारत ने पेरिस के जलवायु समझौते पर हामी भरी थी लेकिन ट्रम्प जीत गए और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन हार गईं। ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनते ही उक्त समझौते का बहिष्कार कर दिया। भारत देखता रह गया। यदि अमेरिका समझौते पर टिका रहता तो भारत को 100 अरब डाॅलर की राशि का बड़ा हिस्सा मिलता।

ऐन राष्ट्रपति-चुनाव के वक्त यह समझौता करने के लिए अमेरिका इसलिए भी उत्साहित है कि ट्रम्प को भारतीय मूल के 19 लाख वोटरों को रिझाना है। भारतीय मूल के लोगों के लिए सबसे सम्मोहक उम्मीदवार कमला हैरिस हैं, जो डेमोक्रेट हैं और बाइडेन के साथ उप-राष्ट्रपति पद के लिए लड़ रही हैं।

अमेरिका में चल रहे चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों के मुताबिक 70% से भी अधिक भारतीय मतदाता बाइडेन व कमला को वोट देने का विचार कर रहे हैं। जाहिर है, इस समझौते से भारतीय मूल के वोटरों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला। इधर ट्रम्प ने प्रदूषण की समस्या पर बोलते हुए भारत को ‘गंदा देश’ बता दिया। उनके इन शब्दों का प्रभाव भारतीय मूल के मतदाताओं पर क्या होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है।

अभी गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच काफी तनाव है। ट्रम्प इस घटना-क्रम का भी फायदा उठाना चाहते हैं। चीन और अमेरिका के बीच आजकल वैसा ही शीतयुद्ध चल रहा है, जैसा कभी सोवियत रूस और अमेरिका के बीच चलता था। अमेरिका चाहता है कि वह चीन की घेराबंदी कर ले ताकि वह सामरिक, व्यापारिक और राजनयिक मामलों में अमेरिका के सामने घुटने टेक दे।

ट्रम्प की नजरों में इस लक्ष्य के लिए भारत सबसे बड़ा मोहरा सिद्ध हो सकता है। इसीलिए टोक्यो में तीन हफ्ते पहले जो क्वाड (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका) की बैठक हुई, उसमें अमेरिकी विदेश मंत्री ने खुलकर चीन-विरोधी बयान दिए। वहीं भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने किसी भी देश के विरुद्ध कुछ नहीं बोला।

अब भी हमारे रक्षा और विदेश मंत्रियों ने दोनों अमेरिकी मंत्रियों से बात करते समय काफी सावधानी बरती है। न उन्होंने ऐसी कोई बात की, जैसी ह्यूस्टन और अहमदाबाद में मोदी ने ट्रम्प को रिझाने की कोशिश की थी और न ही उन्होंने भारतीय मूल के वोटरों को ट्रम्प के पक्ष में झुकाने के लिए कोई इशारा किया। यह अच्छा है कि अमेरिका की आंतरिक राजनीति से इस बार भारत स्वयं को तटस्थ रख रहा है। यों भी ट्रम्प सरकार घोर राष्ट्रवादी और उग्र स्वार्थी रही है। उसने व्यापार के मामले में भारत के साथ सख्ती बरती, भारतीयों के वीजा में अडंगा लगाया और रूसी प्रक्षेपास्त्रों की खरीद पर प्रतिबंध नहीं हटाया।

भारतीय मंत्रियों, प्रधानमंत्री और अफसरों ने यह भी सावधानी बरती कि उन्होंने अमेरिका को खुश करने की खातिर चीन के खिलाफ कुछ भी बोलना ठीक नहीं समझा। चीन से भारत खुद निपटेगा लेकिन उससे निपटने के लिए वह किसी का मोहरा नहीं बनेगा। अमेरिकी मंत्री चीन के खिलाफ घेराबंदी के लिए ही अब श्रीलंका और मालदीव रवाना हो गए हैं।

उन्हें इन छोटे देशों की सुध क्यों लेनी पड़ रही है, क्योंकि जापान, कोरिया, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड वगैरह के साथ-साथ इन देशों में भी चीन का वर्चस्व उन्हें बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। अब तिब्बत पर भी उन्होंने नया मोर्चा खोल दिया है। ट्रम्प यदि जीत भी गए तो उनका कुछ भरोसा नहीं। वे चीन के साथ दुबारा पींगे बढ़ा सकते हैं। वैसे भी चीन के प्रति डेमोक्रेटिक पार्टी का रवैया वह नहीं है, जो ट्रम्प का है।

जहां तक भारत का सवाल है, डेमोक्रेटिक पार्टी का रवैया भारत के प्रति काफी मैत्रीपूर्ण है। अमेरिकी मंत्रियों से बातचीत में भारतीय मंत्रियों ने पारस्परिक सहयोग के कई मुद्दे उठाए हैं। उनमें अफगानिस्तान भी प्रमुख रहा है। यह अच्छी बात है कि भारत ने दोहा-वार्ता में भाग लिया और विभिन्न अफगान-गुटों के प्रतिनिधि भारत आकर उनसे मिल रहे हैं, लेकिन आश्चर्य है कि तालिबान से भारत का कोई सीधा संपर्क नहीं है।

अमेरिका का तालिबान और पाकिस्तान से सीधा संपर्क है। इसीलिए आजकल वह आतंकवाद के बारे में चुप रहता है लेकिन अमेरिकियों के साथ भारत को आतंकवाद का मुद्दा तो उठाना ही चाहिए और संपूर्ण दक्षिण एशिया में यूरोपीय संघ की तरह एक महासंघ खड़ा करने की पहल भी करनी चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Tvbvlb

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी