Skip to main content

दो चरणों के चुनाव अभी बाकी हैं, अनुमानों पर ब्रेक लगाएं

अधिक वोटिंग या कम वोटिंग के बारे में लोगों की अपनी-अपनी व्याख्या हो सकती है, लेकिन तथ्य यह है कि हमें संभावित परिणाम और वोटिंग में कोई बहुत मजबूत संबंध नजर नहीं आता है। मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं बिहार में पहले चरण के 71 विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान के आधार पर अपनी विवेचना पेश करूं। सौभाग्य से मैं इस सवाल से आसानी से बच गया, क्योंकि पहले चरण में इन क्षेत्रों में मतदान कमोवेश 2015 के चुनावों के समान ही रहा।

2015 में इन क्षेत्रों में 54.87 फीसदी मतदान हुआ था और चुनाव आयोग के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार भी यह करीब 54 फीसदी ही है। 3 नवंबर और 7 नवंबर को अभी मतदान के दो चरण और होने हैं और इनके आंकड़ों से ही इस बात की बड़ी व्याख्या होगी कि हवा किस तरफ बह रही है। मेरा मानना है कि पहले चरण के मतदान के आंकड़ों से कोई बहुत ही साधारण लेकिन साथ ही बहुत महत्वपूर्ण अनुमान निकाल सकता है।

चुनाव की तैयारी से पहले ही इस बात की अनेक आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि महामारी के इस दौर में चुनाव किस तरह से कराए जा सकते हैं। इस बात की भी आशंकाएं थीं कि क्या लोग वोट डालने के लिए आएंगे, खासकर बुजुर्ग, जिन्हें इस महामारी में सर्वाधिक खतरा है। लेकिन पहले चरण के मतदान के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के वोटरों में महामारी का निडरता से सामना किया, बहुत हद तक नियमों का पूरी तरह पालन किया, जिनका पोलिंग स्टेशन पर पालन जरूरी भी था।

इसने उन सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया, जिसमें कहा जा रहा था कि लोग वोट डालने आएंगे या नहीं। इन चुनावों में युवा और बुजुर्गों, पुरुष और महिलाओं, गरीब और अमीरों, सभी ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। पिछले चुनावों के रुझानों को देखते हुए अगले दो चरणों में और भी अधिक मतदान हो सकता है। 2010 और 2015 के आंकड़ों के मुताबिक जिन सीटों पर दूसरे और तीसरे चरण में मतदान होना है, उनमें पहले चरण की सीटों की तुलना में अधिक मतदान हुआ था।

2015 में राज्य में कुछ 56.88 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें पहले चरण में 54.87%, दूसरे में 55.47% और तीसरे चरण में 60.51% वोट डाले गए थे। तीसरे चरण में जिन सीटों पर वोट डाले जाने हैं, उनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 26.37% है, इसकी वजह से 2010 और 2015 की तरह इन क्षेत्रों में भारी मतदान हो सकता है। कोई भी संभावित ध्रुवीकरण की वजह से तीसरे चरण में भारी मतदान से इनकार नहीं कर सकता।

मतदान के आंकड़ों से दो ही अनुमान लगाए जा सकते हैं। ज्यादा मतदान का अर्थ सरकार के पक्ष में या सरकार के खिलाफ मतदान हो सकता है और यही बात कम मतदान पर भी लागू होती है। जैसे ही मतदान पूरा होता है, हम आंकड़ों से अनुमान लगाना शुरू कर देते हैं और बिना किसी सबूत के अंतिम फैसला भी दे देते हैं। केवल मतदान के आंकड़ों से यह बताना कि हवा किस ओर बह रही है, उतना ही कठिन है, जितना किसी के चेहरे को देखकर यह बताना कि उसने किसे वोट दिया।

1952 से लेकर 2019 के बीच हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अब तक कुल 365 चुनाव हुए हैं, जिनमें 189 चुनावों (52%) में मतदान में बढ़ोतरी हुई और 66 बार (35%) सत्ताधारी दल की जीत हुई। 142 बार (40%) मतदान में कमी हुई और सत्ताधारी दल की 44 बार (32%) जीत हुई।

इस चुनाव से पहले बिहार में हुए 15 चुनावों में से 10 बार मतदान में बढ़ोतरी हुई, जिसमें चार बार सत्ताधारी दल जीता और छह बार हारा। 15 चुनावों में सिर्फ तीन बार मतदान में कमी हुई और सत्ताधारी दल एक ही बार जीत सका। इसलिए पहले चरण के मतदान के आधार पर हमें किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए, मैं तो आगे बढ़कर यह कहना चाहूंगा कि पूरे राज्य के मतदान के आंकड़ों के आधार पर भी हमें कोई नतीजा नहीं निकालना चाहिए।

इस चुनाव में एनडीए के गठबंधन के जटिल पैटर्न को देखते हुए, इन्हें सावधानी से देखने की जरूरत है, विशेषकर कुछ सीटों पर एलजेपी की मौजूदगी की वजह से वहां का पैटर्न अलग हो सकता है, यह भी ध्यान रखें कि एलजेपी के कुछ प्रत्याशी भाजपा के बागी हैं।

पहले चरण के मतदान और मौजूदा प्रचार के बाद कोई भी सीमित अनुमान ही लगा सकता है कि अगले दो चरणों में मतदान अधिक होने जा रहा है, कम नहीं। तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ रही भीड़ से भी साफ है कि यह चुनाव 2015 और 2010 की तरह एकतरफा नहीं हो सकता। कुछ महीनों पहले ये चुनाव जिस तरह के दिख रहे थे, ये उससे कहीं अधिक करीबी हो सकते हैं।

अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बाकी बची छह रैलियों में वोटरों से संपर्क कायम कर पाते हैं तो उससे एनडीए की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। अगर बेरोजगारी के मुद्दे पर तेजस्वी का युवा वोटरों से संपर्क इसी तरह बना रहता है तो चीजें कुछ अलग हो सकती हैं। यह चुनाव नीतीश कुमार पर एक जनमत सर्वेक्षण के रूप में बदलता दिख रहा है। वह पूर्व के कुछ चुनावों में भी केंद्र में रहे हैं, लेकिन इतना कभी नहीं रहे, जितना इस चुनाव में हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
संजय कुमार, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3edbj3N

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी