Skip to main content

ICMR के पूर्व वैज्ञानिक बोले- एंटीजन टेस्ट के नतीजे 40% तक गलत, इससे संक्रमित पकड़ में नहीं आते

देश में कोरोना संक्रमण एक बार फिर तेज होने लगा है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मुख्यमंत्रियों से कहा कि एंटीजन टेस्ट के बजाय RT-PCR टेस्ट ज्यादा कराएं। जबकि, दूसरी ओर ऐसा बिलकुल भी नहीं हो रहा। बिहार-तेलंगाना जैसे राज्य 80% से ज्यादा एंटीजन टेस्ट कर रहे हैं।

वहीं, दिल्ली-महाराष्ट्र-तमिलनाडु जैसे राज्यों में नए केस ज्यादा बढ़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह क्या है, इस बारे में भास्कर ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रमण गंगाखेड़कर से बात की। उन्होंने कहा कि एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट 40% तक गलत आती है यानी 10 में से 4 संक्रमित इससे पकड़ में नहीं आते। यही सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए लक्षण वाले मरीजों का RT-PCR टेस्ट जरूरी है, लेकिन ज्यादातर राज्य ऐसा नहीं कर रहे। डॉ. गंगाखेड़कर से बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल: आईसीएमआर ने टेस्ट को लेकर प्रोटोकॉल बनाया है। क्या राज्य इसका पालन कर रहे हैं?
जवाब:
मुझे नहीं लगता कि प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है। सभी राज्य एंटीजन टेस्ट बढ़ा रहे हैं, जबकि यह स्पष्ट है कि यदि एंटीजन टेस्ट में लक्षण वाले मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आए तो बिना देरी किए उसका आरटीपीसीआर हो। लेकिन, इसका सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। यह समाज के लिए ठीक नहीं है।

सवाल: इससे क्या और कितना खतरा है?
जवाब:
बीमारी के बावजूद जांच रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उस व्यक्ति से बीमारी फैलती रहेगी। यह बेहद खतरनाक है।

सवाल: टेस्ट को लेकर डब्ल्यूएचओ क्या मानता है?
जवाब:
आरटीपीसीआर और एंटीजन, दोनों तरह के टेस्ट होने चाहिए। दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है। लक्षण दिखने पर तुरंत टेस्ट करना है तो एंटीजन टेस्ट होना चाहिए। क्योंकि, आरटीपीसीआर की रिपोर्ट आने में 24 घंटे लग जाते हैं। हालांकि, आईसीएमआर ने यह भी स्पष्ट कर रखा है कि जितना संभव हो, आरटीपीसीआर टेस्ट ही कराने चाहिए।

सवाल: कुछ राज्यों में प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा। लेकिन, वहां मरीज भी कम हैं। ऐसा कैसे संभव है?
जवाब:
इसे समझने का आसान तरीका है। यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में जांच हो रही है और वहां अस्पताल के बिस्तर खाली हैं तो इसका मतलब है कि सरकार जो कह रही है, वह सही है। रिकॉर्ड में मरीज कम हैं, लेकिन बेड भरे हुए हैं तो इसका मतलब है वहां टेस्ट कम हो रहे हैं।

सवाल: कुछ राज्यों में दूसरी लहर आ चुकी, कहीं 5 महीने बाद भी नहीं आई, क्या यह तार्किक है?
जवाब:
हमारा देश बहुत बड़ा है। यहां हर जगह एक जैसी स्थिति नहीं हो सकती। इसलिए पीक कहीं पहले आएगा तो कहीं बाद में। जहां अभी मरीज कम हैं, वहां मरीज आने वाले समय में बढ़ेंगे। चाहे वह बिहार हो या यूपी।

सवाल: कंपनियों ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीन 95% तक प्रभावी है। लेकिन, कोई भी कंपनी यह नहीं बता रही कि वैक्सीन कितने समय तक इम्यूनिटी देगी। ऐसा क्यों है?
जवाब:
वैक्सीन कितने समय तक इम्यूनिटी देगी, यह पहले कहना मुश्किल है। क्योंकि, यह बीमारी अभी 10 महीने ही पुरानी है। वैक्सीन की अवधि को समझने के लिए दो से तीन साल का समय जरूरी होता है। इसलिए कोई भी कंपनी अभी यह दावा नहीं कर रही कि वैक्सीन कितने समय तक असरदार रहेगी।

सवाल: कोरोना से मौत की दर अब पहले की तुलना में कम हुई है, इसका क्या कारण मानते हैं?
जवाब:
शुरुआती दौर में बीमारी और इलाज की समझ नहीं थी। न तो पीपीई किट्स थीं और न ही पर्याप्त संख्या में एन-95 मास्क। क्या ट्रीटमेंट देना है, यह भी मालूम नहीं था। मरीज भर्ती होता था तो सीधे वेंटिलेटर की बात होती थी और उसे वेंटिलेटर सपोर्ट दे दिया जाता था। मौत की एक वजह यह भी थी। समय के साथ अनुभव से पता चला कि ऑक्सीजन सपोर्ट और मरीज को पेट के बल लिटाने से ही बेहतर इलाज संभव है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
डॉ. रमण गंगाखेड़कर ने कहा कि वैक्सीन की अवधि को समझने के लिए दो से तीन साल का समय जरूरी होता है। इसलिए कोई भी कंपनी अभी यह दावा नहीं कर रही कि वैक्सीन कितने समय तक असरदार रहेगी। (फाइल फोटो)


from Dainik Bhaskar /local/delhi-ncr/news/antigen-test-results-up-to-40-wrong-it-does-not-catch-infected-infection-127953620.html

Comments