Skip to main content

बोर्ड पर लिखा- अपराध, मगर बिहार में अल्ट्रासाउंड से बेटी देखकर 8000 रुपए में ही ले रहे हैं हत्या की ‘सुपारी’

लॉकडाउन से ठीक पहले पूरे बिहार में 25 दिनों तक 11 जिलों के 95 अल्ट्रासाउंड लैब की दैनिक भास्कर ने पड़ताल की। सामने आए कोरोना से भी खतरनाक वायरस, जो अजन्मे बच्चियों को आपकी सोच से भी ज्यादा क्रूरता से मारते हैं...इसके लिए सौदा करते हैं। हमारे स्टिंग में 30 सेंटरों ने भ्रूण का लिंग बताने की गारंटी दी। कोरोना महामारी के दौरान हमने कोरोना से जंग को ही प्राथमिकता दी।

हमने इन सेंटरों पर लगातार नजर रखी। लॉकडाउन के दौरान ये बंद रहे। अब लॉकडाउन हटा तो हमारी टीम दोबारा इन सभी सेंटरों पर पहुंची। यहां ये धंधा फिर उसी तरह चलने लगा था। टीम को सात लैब ऐसे भी मिले, जो किसी पहचान वाले को लाए बगैर रेट बताने को तैयार नहीं हुए।

भास्कर टीम ज्यादा खुलकर डील करने वाले 10 जिलों के 21 लैब के स्टिंग ऑपरेशन में सामने ला रही कि यहां मां के पेट में पल रहे भ्रूण का लिंग बताने को डॉक्टर, नर्स या स्टाफ उसी तरह तैयार हैं, जैसे मांस की दुकानों पर कसाई तैयार बैठे रहते हैं। कई क्लिनिक तो बेटी होने पर गर्भ गिराने का पैकेज तक बनाए बैठे हैं।

औरंगाबाद में भास्कर टीम ने कम दिनों की गर्भवती महिला को लैब तक ले जाकर स्टिंग किया। हमने जिस गर्भवती महिला की मदद ली, उसमें इस बात का ध्यान रखा कि गर्भ कम समय का हो, जिससे लिंग की पुष्टि न हो सके। स्टिंग ऑपरेशन की टीम जितनी जगह गई, उनमें लिंग जांच से सीधे इनकार करने वाले भी मिले।

हत्यारों को 5 साल की सजा का भी डर नहीं

ये अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर भी पोस्टर लिख है- ‘यहां लिंग परीक्षण नहीं किया जाता है, यह गैरकानूनी और अपराध है।’ हकीकत आपके सामने है। वैसे भ्रूण की लिंग जांच पर डॉक्टर और/या क्लिनिक संचालक के पहले अपराध पर तीन साल, दूसरे पर 5 साल तक जेल का प्रावधान है, लेकिन इसका डर किसी को नहीं।

ये कोरोना से भी बड़े काल... कुछ जगहों पर सिर्फ कर्मचारी बदले, काम नहीं

औरंगाबाद में क्लिनिक से डॉक्टर का रेफर

डॉक्टर- चेक कर लिए हैं, गर्भवती हैं।
रिपोर्टर- हां सर, लेकिन यही तो दिक्कत है।
डॉक्टर- जो बात है, साफ-साफ बोलिए।
रिपोर्टर- 3 बच्ची पहले से है। जांच कराना है।
डॉक्टर- पहले बोलना चाहिए था। हो जाएगा।
रिपोर्टर- पैसा कितना लगेगा सर?
डॉक्टर- 5-6 हजार मांगता है, पर मेरे बारे में बोलिएगा, कुछ सस्ता कर देगा।
रिपोर्टर- सर पैसा के लिए कोई दिक्कत नहीं, रिपोर्ट सही आनी चाहिए कि लड़का है कि लड़की।
डॉक्टर- आप जाइए तो, मेरा सारा जांच वहीं (भखरुआ मोड़ के पास) जाता है। रिपोर्ट में कोई दिक्कत नहीं।

अल्ट्रासाउंड सेंटर पर रिपोर्ट की गारंटी भी दी

भखरुआ मोड़ के पास मां विंध्यवासिनी अल्ट्रासाउंड केन्द्र पर

टेक्निशियन ने कहा- डॉक्टर साहब से बात हो गई है न...
टेक्निशियन- 4500 रुपया जमा कीजिए। डॉक्टर साहब के कहने पर हम 500 रुपया छोड़ दिए हैं। इससे ज्यादा नहीं छोड़ पाएंगे।
रिपोर्टर- ठीक है सर, लेकिन रिपोर्ट सही बता दीजिएगा।
टेक्निशियन- रिपोर्ट के कारण ही तो लोग गली में चलकर आते हैं। डेहरी का रिपोर्ट फेल हो गया है, लेकिन आज तक यहां का शिकायत नहीं है।
रिपोर्टर- ये बात डॉक्टर साहब बोल रहे थे।
टेक्निशियन- डॉक्टर साहब को मेरे रिपोर्ट पर भरोसा है, तभी तो यहां भेजते हैं। उनका सारा रिपोर्ट यहीं आता है।

भखरुआ मोड़ के पास मां विंध्यवासिनी अल्ट्रासाउंड सेंटर।

राजधानी के पास भी नहीं बदले हालात

पटना में दानापुर के भुसौला स्थित हिंद क्लीनिक में पति जांच करता है और पत्नी अबॉर्शन। गर्भपात का रेट गर्भ के समय के हिसाब से...
रिपोर्टर: लेडीज नहीं हैं डॉक्टर साहब? पहले आया था तो लेडीज से बात हुई थी।
स्टाफ: क्या बात है? बताइए।
रिपोर्टर: तीन बेटी पहले से है, अब फिर पेट से है। देखना है कि क्या है अंदर। कितना पैसा लगेगा?
स्टाफ: जांच के लिए 2000-2500 रुपए लगेगा।
रिपोर्टर: उसके आगे की प्रोसेसिंग?
पति: वो मैडम करती हैं। 7,8, 9 महीने तक का काम हो जाएगा।
रिपोर्टर: रिस्क वाली बात कोई नहीं होगी न?
पति: रिस्क वाली बात कोई नहीं है, जितना समय होता है, उतना ज्यादा पैसा लगता है।
रिपोर्टर: मैडम का नाम सुनीता है?
पति: सुनीता नहीं, उर्मिला नाम है।
रिपोर्टर: मैडम ही करती हैं या कोई कोई?
पति: इमरजेंसी होती है, तो पीएमसीएच से बड़े डॉक्टर आते हैं। (कंप्यूटर स्क्रीन) पर बैठा देंगे।

पटना में दानापुर के भुसौला स्थित हिंद क्लीनिक में पति जांच करता है और पत्नी अबॉर्शन।

...और अल्ट्रासाउंड के 5 मिनट बाद,जब चाहेंगे, हो जाएगा एबॉर्शन

रिपोर्टर- क्या दिखा रहा है सर?
टेक्निशियन- अभी बच्चा छोटा है, 10 दिन बाद पता चलेगा।
रिपोर्टर- ऐसा क्यों सर?
टेक्निशियन- बच्चा का ग्रोथ नहीं हुआ है। इसीलिए ऐसा हो रहा है। इनको विटामिन खिलाना होगा।
रिपोर्टर- फिर कब आना होगा सर?
टेक्निशियन- 5 फरवरी को नाश्ता कराकर लेते आइएगा।
रिपोर्टर- अभी वाला रिपोर्ट दीजिएगा?
टेक्निशियन- इसका रिपोर्ट कहीं मिलता है! कोई कोना में इसका रिपोर्ट नहीं देगा। आपको व डॉक्टर को बता देंगे।
रिपोर्टर- इ तो हेडक हो गया सर। लेट होने पर एबॉर्शन कैसे होगा?
टेक्निशियन- हेडक का कोई बात नहीं। एबॉर्शन आठ माह तक के बच्चा का होता है। लाइएगा हम सब करवा देंगे। किसी से यह सब बात मत बताइएगा। नहीं तो दिक्कत होगा।

ये ज्यादा जघन्य हत्या है, फिर इसमें सिर्फ 3 साल की सजा क्यों?

(सतीश सिंह, संपादक) अगर हम लिखें कि राज्य में भ्रूणहत्या हो रही है... तो आप शायद इसे अनदेखा कर दें। लेकिन अगर हम लिखें कि बिहार के अल्ट्रासाउंड सेंटर ही दावा करते हैं कि राज्य में रोज 72 यानी हर साल 26000 से अधिक अजन्मी बच्चियों की हत्या की जा रही है...तो आप चौंक जाएंगे। दोनों वाक्य में एक ही तथ्य हैं, फर्क है कि पहले भ्रूण शब्द का प्रयोग किया और दूसरी बार बच्चियों की हत्या कहा और एक आंकड़ा जोड़ा। सिर्फ ‘भ्रूण’ के स्थान पर ‘बच्चियों’ शब्द के प्रयोग से संवेदनाएं जग जाती हैं, ये मनोवैज्ञानिक तथ्य है।

लेकिन क्या केंद्र सरकार अब तक इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को नहीं समझ पाई है। फर्स्ट डिग्री मर्डर यानी हत्या की बात साबित हो जाए तो कम से कम उम्रकैद और फांसी तक की सजा का प्रावधान है। मगर भ्रूण हत्या की बात साबित हो जाए तो सिर्फ तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों...।

एक व्यक्ति तो हत्यारे से संघर्ष कर सकता है, मगर एक अजन्मी बच्ची तो कभी अपने हत्यारे को देख तक नहीं पाती। देखा जाए तो ज्यादा सोचा-समझा और संगीन जुर्म तो इन अजन्मी बच्चियों की हत्या है। क्योंकि यहां हत्या की सुपारी देने वालों में उसके अपने हैं और हर हत्यारा वह शख्स है जिसने जिंदगियां बचाने की शपथ ली है। फिर भी इन मामलों में अमूमन तो केस दर्ज ही नहीं होता, हो भी जाए तो आरोप साबित होना और सजा मिलना असंभव-सा है। स्थिति ये कि जहां रोज भ्रूण हत्या हो रही है, वहां सजा कब-किसे हुई, किसी को ध्यान नहीं।

दुष्कर्म के मामले में निर्भया केस के बाद सरकार ने कानून में संशोधन कर 10 साल तक की कैद को फांसी तक की सजा में तब्दील कर दिया। तो फिर भ्रूणहत्या के मामले में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? जब नाबालिग से दुष्कर्म के मामले को ज्यादा गंभीर मानते हुए नया पॉक्सो एक्ट लाया जा सकता है तो अजन्मी बच्ची की हत्या में सख्ती क्यों नहीं बरती जा सकती? ऐसा नहीं कि ऐसे केस सिर्फ ग्रामीण या अशिक्षित लोगों के बीच ही है। शहरों और पढ़े लिखे लोग ये अपराध ज्यादा कर रहे हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक देश में लिंगानुपात में बिहार की स्थिति निचले पायदानों के 6 राज्यों में से एक है। वहीं राज्य में प्रमुख शहरी इलाकों में से एक भागलपुर की स्थिति सबसे खराब (879) है और राजधानी पटना खराब जिलों में छठे स्थान पर है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-3 (2005-06) में लिंगानुपात 902 था। नीतीश सरकार के प्रयास से ये नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-2016) में 934 हो गया।...लेकिन अब इसमें और ठाेस कदम की जरूरत है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
बिहार में डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड वाले का पता दिया, उसे कॉल भी किया, सेंटर वाले ने एबॉर्शन कराने का ऑफर दिया।


from Dainik Bhaskar /local/bihar/patna/news/crime-written-on-the-board-but-seeing-the-daughter-from-ultrasound-she-is-taking-supari-of-murder-for-only-8000-rupees-127462266.html

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक...

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96...

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी ...