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टिकटॉक विवाद से मिली नई सीख, किसी भी ऐप को डाटा जानकारी देने से पहले लें पूरी जानकारी; एंड्रॉयड और एप्पल के नए OS में ज्यादा सुरक्षा

ब्रायन एक्स चेन. टिकटॉक ऐप के विवाद ने हमें हमारे फोन की सेफ्टी को लेकर अलर्ट कर दिया है। भारत सरकार ने इस ऐप पर बैन लगाया है। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसपर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं। अभी तक ऐसा कोई भी सीधा सबूत नहीं मिला है, जिससे पता लग सके कि कंपनी यूजर के डाटा के साथ कुछ गलत कर रही है। हालांकि ऐसी कंपनी के साथ डाटा शेयर करना कम सुरक्षित हो सकता है, जो चीनी अधिकारियों को इसके बीच आने की अनुमति दे सकती है।

चीनी सर्वर की कोडिंग हटा दी गई
इस बात का पता करने के लिए दो मोबाइल सिक्युरिटी प्रोडक्ट्स देने वाले एक्सपर्ट्स से बात की गई। उनसे टिकटॉक ऐप की जांच करने को कहा गया। हालांकि, उन दोनों के इसपर अलग-अलग मत थे। सेन फ्रांसिस्को की सिक्युरिटी फर्म डिसकनेक्ट ने आईओएस के लिए टिकटॉक ऐप के कोड की जांच की।

जुलाई में ऐप के कोड में चीनी सर्वर्स का हवाला था। बीते हफ्ते जब डिसकनेक्ट ने ऐप के लेटेस्ट वर्जन को रिव्यु किया तो पाया कि चीनी सर्वर्स से संबंधित कोड की लाइन्स को हटा दिया गया था। डिसकनेक्ट के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर पैट्रिक जैक्सन ने कहा कि उन्होंने ऐप के जरिए चीन सर्वर में किसी तरह का डाटा ट्रांसमिशन नहीं देखा है, लेकिन कोड का होना और हाल ही में हटाया जाना संदिग्ध है।

दूसरी सिक्युरिटी कंपनी फाइड के सीईओ सिनन एरन ने कहा कि ऐप में चीन के सर्वर्स के रेफरेंस होने ने उन्हें चौंकाया नहीं। कई ऐप्स ऐसी होती हैं जो कई कारणों से चीनी सर्वर्स पर निर्भर होती हैं। उदाहरण के लिए, अगर ऐप के पास एशियन देशों में यूजर्स हैं और वे उन्हें सस्ते तरीके से वीडिया स्ट्रीम करना चाहते हैं। एरन ने कहा "यह कहना किसी के लिए वास्तविक नहीं होगा कि वे कभी भी चीनी सर्वर का उपयोग नहीं करने वाले हैं।"

टिकटॉक की सफाई
ऐप का कहना था कि डिसकनेक्ट को मिला कोड पुराना था और उसका हटाया जाना एक प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसके तहत ऐसे फीचर्स को रिमूव किया जा रहा था, जिनका यूजर उपयोग नहीं कर रहे थे। कंपनी ने अपने बयान में कहा था, "हमने चीन सरकार के साथ अपना डाटा शेयर नहीं किया है और अगर कहा जाए तो भी नहीं करेंगे।"

मंगलवार को न्यूयॉर्क टाइम्स ने कोड को लेकर बात की तो टिकटॉक ने भी "प्रोवाइडिंग पीस ऑफ माइंड" के नाम से एक ब्लॉग प्रकाशित किया। इसमें कंपनी ने कहा "कंफ्यूजन और भ्रांतियों को कम करने के लिए यह असक्रिय कोड को साफ करने की कोशिशें थीं।"

ऐप यूजर्स के लिए सीख
टिकटॉक कोड को लेकर चल रही बहस में ऐप्स के यूजर्स के लिए भी सीख है। लगातार डिजिटल यूज के कारण हम कई बार बिना सोचे समझे ऐप्स को अपनी जानकारी दे देते हैं। यह विवाद हमें सिखाता है कि किसी भी ऐप के साथ डाटा शेयर करते वक्त सावधानी रखना है। पर्सनल डाटा की मांग को मना करने की हमें आदत डालनी होगी। जैक्सन का कहना है "हमें हमारे डाटा शेयरिंग की संख्या को कम करना चाहिए। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन उसे पहले कलेक्ट कर रहा है।"

जानिए अपना ऐप डिफेंस तैयार करने के लिए आप क्या कर सकते हैं...
जब भी आप अपने फोन में नई ऐप इंस्टॉल करते हैं तो परमिशन मांगने के लिए कई पॉप-अप आते हैं। ऐसे में परमिशन देने से पहले खुद से कुछ सवाल करना बहुत जरूरी है।

  • क्या इस ऐप को ठीक से काम करने के लिए सेंसर या डाटा की जरूरत है?
  • क्या इस ऐप को सेंसर या डाटा की जरूरत केवल कुछ समय के लिए है या हमेशा के लिए?
  • क्या मैं इस कंपनी पर आपने डाटा को लेकर भरोसा कर सकता हूं?

कभी-कभी ऐप्स को अनुमति देना सही होता है। क्योंकि गूगल मैप्स जैसी सर्विस को आप कहां है और कहां जाना चाहते हैं, यह जानने के लिए लोकेशन डाटा की जरूरत पड़ती है। गैस बडी, एक ऐसी ऐप जो आपको सस्ते नजदीकी गैस स्टेशन की जानकारी देती है।

आप जीपीएस सेंसर के जरिए ऐप को डिवाइस की लोकेशन दे सकते हैं, लेकिन ऐसे में एरिया कोड डालना ज्यादा सुरक्षित होता है। इससे आपके लोकेशन की कम जानकारी शेयर होती है। (2018 की टाइम्स इनवेस्टिगेशन में टाइम्स ने पाया था कि गैस बडी उन दर्जनों ऐप्स में से एक थी जो यूजर के लोकेशन डाटा को थर्ड पार्टी के साथ शेयर करती थी।)

अब सवाल आता है कि क्या ऐप को आपके डाटा की जानकारी पर्मानेंट चाहिए या कुछ समय के लिए। इसका मतलब होता है कि ऐप आपकी निजी जानकारी जैसे- फोटो, लोकेशन तक कभी भी पहुंच सकती है। भले ही आप उससे संबंधित फीचर्स का इस्तेमाल न कर रहे हों।

आमतौर पर इसका जवाब न होता है। भले ही डाटा की अनुमति देने जीवन को आसान बनाता हो, लेकिन अगर आप कंपनी पर भरोसा नहीं करते हैं तो संकोच करना सही हो सकता है। एरन, जो कहते हैं कि उन्हें इतने सारे डाटा स्कैंडल के बाद फेसबुक पर भरोसा नहीं है, लेकिन फेसबुक की मैसेजिंग सर्विस व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि फेसबुक के साथ एड्रेस बुक शेयरिंग से बचने के लिए उन्होंने कहा कि वे सभी कॉन्टेक्ट्स को वॉट्सऐप पर मैन्युअली जोड़ते हैं।

अच्छी खबर: एप्पल और गूगल ने आसान किया रास्ता
मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम के अगले वर्जन IOS 14 में लोकेशन की जानकारी मांगने वाली ऐप्स आपको एक नया ऑप्शन देंगी। इसके तहत आप अनुमानित लोकेशन शेयर कर सकते हैं। गूगल ने कहा कि एंड्रॉयड 11 में यूजर ऐप्स को केवल एक बार लोकेशन डाटा उपयोग की अनुमति दे सकेंगे। इससे ऐप के साथ लगातार लोकेशन डाटा शेयरिंग रुकेगी।

गूगल ने यह भी कहा कि अगर कोई ऐसी ऐप्स जो आपका सेंसर या डाटा की जानकारी रखती हैं और लंबे समय से उपयोग में नहीं आईं तो उन्हें एंड्रॉयड 11 में फिर से अनुमति मांगनी होगी। नया ऑपरेटिंग सिस्टम वर्जन ऐसी ऐप्स फिर से परमिशन मांगने के लिए अपने आप रीसेट कर देगा।

ऐप ट्रैकिंग को रोकें
कई ऐप्स हमारे डिवाइस से लगातार लोकेशन ले रही हैं और थर्ड पार्टी के साथ शेयर कर रही हैं। जिन मार्केटर्स के पास यह जानकारी है वो आपके बारे में जानकारी तैयार कर सकते हैं और अन्य ऐप्स के साथ आपको अलग-अलग एडवरटाइज भेज सकते हैं। इसे ऐप ट्रैकिंग कहा जाता है। इस तरह डाटा शेयरिंग को रोकने के लिए कथित ट्रैकर्स और ब्लॉकर्स की सलाह दी जाती है।

एरन की ऐप फाइड आईओएस और एंड्रॉयड डिवाइस के लिए फ्री है और अपने आप ऐसे ट्रैकर्स को ब्लॉक करती है। उदाहरण के लिए डिसकनेक्ट भी ट्रैकर ब्लॉकिंग ऐप्स की सुविधा देती है, जैसे- प्राइवेसी प्रो और डिसकनेक्ट प्रीमियम। एप्पल ने कहा कि IOS 14 में ट्रैकिंग के लिए पहले यूजर से अनुमति लेनी होगी।

जानकार रहें, रिसर्च करते रहें
अगर आप सोच रहे हैं कि एक कंपनी कैसे ऐप की पेशकश कर रही है तो पहले बिजनेस पर रिसर्च करें। अपने डाटा के बारे में जानकारी और शेयरिंग को कम करने के लिए कंपनी की वेबसाइट पढ़ें और उन्हें कुछ सवाल भेजें। अगर यह एक फ्री ऐप है और कमाई के लिए एडवरटाइज पर निर्भर है तो आप यह मान सकते हैं कि आपका डाटा लेनदेन का हिस्सा है।

जैक्सन ने कहा "यह इसके बारे में नहीं है कि वे आज क्या कलेक्ट करते हैं, यह लंबे समय से चल रहा है। आपको पता लगने से पहले ये ऐप्स आपके बारे में बड़ी प्रोफाइल बना लेती हैं और इसे कई लोगों को बेच चुकी होती हैं।"



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New learning from Ticktock controversy; Take complete information before giving data information to any app; More security in Android and Apple's new OS


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