Skip to main content

यह उथल-पुथल, बंटने और जागने का साल रहा; हमें इस साल हुई गलतियों को भूलना नहीं, सुधारना है

साल 2020 को दुनिया ईयर ऑफ डिसरप्शन (टूटना या उथल-पुथल), ईयर ऑफ डिवाइड (बांटने) और ईयर ऑफ वेकअप (जगाने) के रूप में याद रखेगी। हमारा मुल्क भी इससे अछूता नहीं रहा है। साल की शुरुआत शाहीन बाग में महिलाओं के प्रदर्शन से हुई। फिर लॉकडाउन लगा, जिसमें अप्रैल-मई की चिलचिलाती धूप में प्रवासी मजदूरों का पलायन देखा। ट्रांसपोर्ट सुविधा बंद होने की वजह से लोग पैदल ही सैकड़ों किमी दूर अपने गांवों की ओर चल दिए। इसी बीच सीमा पर चीन का संकट आया और साल के आखिर में हम कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का सबसे बड़ा प्रदर्शन देख रहे हैं।

इस साल सबसे बड़ी उथल-पुथल तो कोरोना ने पैदा की। इसने पब्लिक हेल्थ सिस्टम का एक्स-रे कर दिया। हमारे सोचने-समझने से लेकर जीवनशैली तक को बदल दिया। साथ ही, सरकारी तंत्र की ताकत को भी बढ़ा दिया। अभी तक सरकारी तंत्र बता रहा है कि कहां जाना है, कहां नहीं जाना है? साल खत्म होते-होते यूपी सरकार लव जिहाद कॉन्सेप्ट पर उतर आई है। वहां डीएम तय करेगा कि जो शादी हुई है, वह जोर जबरदस्ती से हुई है, धर्मांतरण के लिए हुई है। यानी बेहद निजी मामलों में भी सरकार का दखल बढ़ गया।

मैं मानता हूं कि लॉकडाउन जरूरी था। मैं उनमें से हूं कि मानता हूं कि लॉकडाउन करना पड़ेगा। लेकिन लॉकडाउन में बहुत अधिक ताकत चंद अधिकारियों और पुलिस को दे दी गई। उससे महसूस होने लगा कि एक जोर-जबरदस्ती हो रही है और इसकी वजह से कई लोगों को तकलीफ हुई। खासकर छोटी इंडस्ट्रीज को बहुत नुकसान हुआ। बाबू को कोई कारोबार नहीं चलाना होता और यह कहना बहुत आसान होता कि आप अपने कारोबार को इतने दिनों के लिए ठप रखिए।

लॉकडाउन के अलावा हमारे पास विकल्प नहीं था और इस दिशा में प्रयास के लिए देश और प्रदेश की सरकारों को पूरे अंक मिलने चाहिए। लेकिन जिस तरह से उसे लागू किया गया, वह सही नहीं था। अप्रैल से जून के बीच गृह मंत्रालय के एक के बाद तमाम नोटिफिकेशन आए, उससे अनिश्चतता और बढ़ती गई।

इधर, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की पूरी तरह से पोल खुल गई। हम प्राइवेट हेल्थ केयर की बात करते हैं, लेकिन निजीकरण का इस दौर में क्या फायदा हुआ? अधिकांश लोगों को इस महामारी में सरकारी अस्पतालों में ही जाना पड़ा और सरकारी तंत्र पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ा। मुंबई जैसे शहरों में तो तंत्र बिखर भी गया।

इसी तरह डिजिटल डिवाइड का गैप बढ़ गया। किसी पास पढ़ाई के लिए उपकरण हैं, नेट है और किसी के पास ये सुविधाएं नहीं हैं। हमारे समाज की गैर-बराबरी को इस काल ने बहुत सफाई और ताकत से उजागर कर दिया। मध्यम वर्गीय तो शायद लॉकडाउन झेल पाया, क्योंकि उसके पास अपेक्षाकृत ज्यादा जगह थी। लेकिन, मजदूर जो हमारे घर बनाते हैं, कारखानों में मेहनत करते हैं, वो एक-एक कमरे में 10-10 की संख्या में रहते हैं। उनकी जिंदगी में तो आफत ही आ गई।

कोरोना के दौरान पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा, लेकिन हमारी समस्या यह रही कि हमारे यहां तो कोरोना के पहले ही अर्थव्यवस्था काफी पीछे चली गई थी। नोटबंदी के बाद से ही हमारी अर्थव्यवस्था काफी मंदी में चल रही थी। भारत जैसे देश में यदि ग्रोथ 5 से 6%नहीं रहेगी, तो करोड़ों नौकरियां चली जाएंगी और ये जो हमारे डेमोग्राफिक डिविडेंड हैं, वो डेमोग्राफिक डिजास्टर बन जाएंगे।

जब हम इस साल की सभी घटनाओं को बड़े कैनवास पर देखें कि कोरोना, इकोनॉमी में गिरावट हो, चीन का मामला हो तो लगता है कि यह सरकार दबाव में है। सरकार पर विपक्ष हावी होगा। लेकिन असल तस्वीर यह है कि मोदी जी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। विपक्ष एक तरह से नाकाम रहा। नतीजा बिहार के चुनाव परिणाम रहे। जहां पलायन के बाद सबसे अधिक मजदूर लौटे, लेकिन नवंबर में वही सरकार दोबारा जीती। आज विपक्ष वाली असली ऊर्जा आम लोगों में दिख रही है, जिसका उदाहरण किसानों का प्रदर्शन है।

हमारी सेना के लिए भी वेक अप कॉल है कि क्या हमने चीन को अंडर एस्टिमेट किया? क्या हमसे इंटेलिजेंस या मिलिट्री फेल्योर हुआ? हम न्यू इंडिया की बात करते हैं, पर पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर निवेश को डबल नहीं करते। हमारी मीडिया पर सवाल है कि किसानों के प्रदर्शन में मीडिया के खिलाफ नारेबाजी होती है। संसद से लोगों को भरोसा उठ रहा है, संसद में कानून पारित होता है, लेकिन लोग सड़कों पर आ जाते हैं।

लोग चाहेंगे कि इस साल को भूल जाना चाहिए, लेकिन हमें इस साल को भूलना नहीं है, इस साल हमसे जो गलतियां हुई हैं उनको हमें सुधारना है क्योंकि वे हमारे लोकतंत्र से जुड़ी गलतियां हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3rD81wG

Comments

Popular posts from this blog

आज वर्ल्ड हार्ट डे; 1954 में सर्न बना जिसने खोजा गॉड पार्टिकल, भारत भी रहा था इस सबसे बड़ी खोज का हिस्सा

वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला। मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा। इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं। हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारक...

60 पार्टियों के 1066 कैंडिडेट; 2015 में इनमें से 54 सीटें महागठबंधन की थीं, 4 अलग-अलग समय वोटिंग

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज पहले फेज की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1 हजार 66 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 952 पुरुष और 114 महिलाएं हैं। दूसरे फेज की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। लेकिन, अलग-अलग सीटों पर वोटिंग खत्म होने का समय अलग-अलग है। 4 सीटों पर सुबह 7 से शाम 3 बजे तक वोटिंग होगी। वहीं, 26 सीटों पर शाम 4 बजे तक, 5 सीटों पर 5 बजे तक, बाकी 36 सीटों पर 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। पहले फेज की 6 बड़ी बातें सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार गया टाउन और सबसे कम 5 उम्मीदवार कटोरिया सीट पर। सबसे ज्यादा 42 सीटों पर राजद, 41 पर लोजपा और 40 पर रालोसपा चुनाव लड़ रही है। भाजपा 29 पर और उसकी सहयोगी जदयू 35 पर मैदान में है। 22 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 31 हजार 371 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसमें 31 हजार 371 कंट्रोल यूनिट और VVPAT यूज होंगे। 41 हजार 689 EVM का इस्तेमाल होगा। वोटर के लिहाज से हिसुआ सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.76 लाख मतदाता हैं। इनमें 1.96...

दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं; बिहार, केरल और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ रही है इनकी आबादी

आज ग्लोबल टाइगर डे है। इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं। सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं। मंगलवार को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2018 की 'बाघ जनगणना' की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। ये जनगणना हर चार साल में होती है। उन्होंने बताया कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं। बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था। इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे। 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है। आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी। जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है उससे उम्मीद है कि 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा। भारत में बाघों की आबादी ...